१. संगच्छध्वं संवदध्वम् _ सारांश

 

पाठ का सारांश -

·                                      विद्यार्थियों ने विद्यालय की फुटबॉल प्रतियोगिता में जीत प्राप्त की और आचार्य को यह सूचना दी।

चर्चा होती है कि विरोधी दल के खिलाड़ियों में सहयोग की भावना नहीं थी, जबकि विजयी दल में एकता थी।

आचार्य समझाते हैं कि विजय के लिए टीम भावना, सहयोग, और समर्पण आवश्यक है

इसी भावना को ऋग्वेद के संज्ञान सूक्त में दर्शाया गया है, जिसमें तीन प्रमुख वैदिक मंत्रों का उल्लेख है:

1.      "संगच्छध्वं संवदध्वम् सं वो मनांसि जानताम्"

सब मिलकर चलो, एक आवाज़ में बोलो, और एक जैसे विचार रखो।

2.      "समानो मन्त्रः समितिः समानी..."

सबका विचार, उद्देश्य और भावना एक जैसी होनी चाहिए।

3.      "समानी व आकूतिः समाना हृदयानि..."

सभी के संकल्प, भाव और हृदय एक जैसे होने चाहिए जिससे समाज में प्रेम और शांति बनी रहे।

 

भाग 1: प्रस्तावना और संवाद

  • छात्र अपने विद्यालय की फुटबॉल प्रतियोगिता में जीत की जानकारी आचार्य को देते हैं।
  • वे बताते हैं कि विजयी टीम में सामंजस्य और सहयोग था जबकि विपक्षी टीम में आपसी मनमुटाव था।
  • आचार्य इस अवसर पर वेद के संगठन-सूक्त” की चर्चा करते हैं, जो सामूहिक सफलता के सूत्र देता है।

 

भाग 2: वेद के तीन प्रमुख मंत्रों का भावार्थ

🕉 मंत्र 1: संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्...

  • भावार्थ: हे मानवों! एक साथ चलो, एकसुर में बोलो, और एक-दूसरे के मन की बात समझो। जिस प्रकार सृष्टि के प्रारंभ में देवताओं ने एकता से यज्ञ को सफल बनाया, वैसे ही मनुष्य भी यदि एकता से कार्य करें तो समाज में समृद्धि आए।

मंत्र 2: समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सह चित्तमेषाम्...

  • भावार्थ: सभी का चिंतन, उद्देश्य, और मन समान हो। यही मानसिक समरसता समाज को द्वेषमुक्त और सुखद बनाती है। वेद कहता है कि हम सभी एक भाव, एक मन्त्र और एक उद्देश्य से यज्ञ करें — यानी एकजुट होकर कार्य करें।

मंत्र 3: समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः...

  • भावार्थ: तुम्हारे संकल्प, भावनाएँ और हृदय एक समान हों ताकि तुम्हारा संगठन सशक्त और उत्तम बने। एकजुटता ही समृद्ध, स्वस्थ, और प्रसन्न जीवन का आधार है।

 

भाग 3: प्रेरणा और उद्देश्य

  • यह सूक्त छात्रों को प्रेरित करता है कि वे परिवार, समाज और राष्ट्र के हित में एकजुट होकर कार्य करें
  • एकता से ही ज्ञान, समृद्धि, स्वास्थ्य, और आत्म-संतोष प्राप्त होता है।

 

वैदिक मंत्र —

संगच्छध्वं संवदध्वम् सं वो मनांसि जानताम्।

देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते ॥”

यह मंत्र केवल शब्दों की अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि एक जीवन-दृष्टि, एक सामाजिक आदर्श, और एक चेतनाशील जीवन की राह दिखाता है।

मन्त्र का पदच्छेद और अन्वय

पदच्छेदः संगच्छध्वम् संवदध्वम् सं वः मनांसि जानताम्। देवा भागं यथा पूर्वे संजानानाः उपासते।

अन्वयः हे मानवों! तुम सब संगच्छध्वम् (मिलकर चलो), संवदध्वम् (एकस्वर में बोलो), और तुम्हारे मन (मनांसि) एक-दूसरे को जानें। जैसे प्राचीन काल में देवता भाग लेकर एकता से उपासना करते थे।

 

भावार्थ का गहन विश्लेषण

1. संगच्छध्वम् – “मिलकर चलो”

गच्छध्वम्” = चलो; “सम्” उपसर्ग = मिलकर

यह केवल शारीरिक एकता नहीं, बल्कि मानसिक और उद्देश्य की एकता है। यह हमें अपने परिवार, समाज, संगठन में समुच्चय की भावना विकसित करने के लिए प्रेरित करता है।

2. संवदध्वम् – “एक स्वर में बोलो”

यह मंत्र समविचार और संवाद की आवश्यकता को दर्शाता है।

संवाद का अर्थ मात्र विचारों का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि समवेत स्वर से एक उद्देश्य की ओर बढ़ना है।

यहाँ “संवाद” = सहमति + समझौता + श्रवण कौशल

3. सं वो मनांसि जानताम् – “तुम्हारे मन एक-दूसरे को जानें”

यह मानसिक समरसता की गहराई को प्रकट करता है।

सभी का मनोभाव एक-दूसरे को समझने योग्य हो; जिससे वैमनस्य समाप्त हो और मैत्री उत्पन्न हो।

4. देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते – “जैसे पहले देवता भाग लेकर एकजुट हुए”

यहाँ "देवता" का प्रतीकात्मक अर्थ है — प्रकृति की शक्तियाँ या ब्रह्मांडीय ऊर्जा।

इन शक्तियों ने एक साथ, अपने-अपने कर्तव्यों को निभाते हुए, सृष्टि को संचालित किया।

इससे यह सीख मिलती है कि जब व्यक्ति अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों को समरसता से निभाते हैं, तभी सृष्टि की प्रगति होती है।

 

व्यावहारिक दृष्टिकोण

  • यह मंत्र केवल वैदिक जीवन का नियम नहीं है, बल्कि आज के समय में भी टीमवर्क, नेतृत्व, सामूहिक निर्णय, और रचनात्मक सहयोग के लिए मार्गदर्शक है।
  • शिक्षण, प्रशासन, पारिवारिक जीवन, राजनीति, हर क्षेत्र में इसके भाव को अपनाना सफलता का मूलमंत्र बन सकता है।

 

 भावार्थ का गहन विश्लेषण

1. “समानो मन्त्रः” – समान चिन्तन और विचार

  • यहाँ "मन्त्रः" का अर्थ केवल वैदिक श्लोक नहीं, बल्कि संकल्प, चिन्तन, और दिशा भी है।
  • समाज के सभी वर्गों में विचारों की एकरूपता, लक्ष्य की स्पष्टता होनी चाहिए ताकि विकास और शांति सुनिश्चित हो सके।

2. “समितिः समानी” – लक्ष्य और उद्देश्य की समानता

  • "समिति" का तात्पर्य है सामूहिक संकल्प या एकत्रित ध्येय
  • जैसे कोई सभा या संगठन एक लक्ष्य को लेकर एकत्र होता है, वैसे ही जीवन की यात्रा में भी समान ध्येय आवश्यक है।

3. “समानं मनः सह चित्तमेषाम्” – मन और बुद्धि की सामरस्यता

  • "मनः" = भावना, "चित्तम्" = विचार या निर्णय शक्ति
  • भावनात्मक और बुद्धिपरक एकता से ही सच्चे समुदाय का निर्माण होता है।
  • यह अंश हमें सिखाता है कि केवल भावनाओं से नहीं, बल्कि ज्ञान, तर्क और समझदारी से भी एकता निर्मित होती है।

4. “समानं मन्त्रमभिमन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि” – यज्ञ और प्रार्थना में एकता

  • यह पंक्ति दिव्य कर्मों की सामूहिकता को दर्शाती है।
  • "अभिमन्त्रये" = मंत्र को संस्कारपूर्वक प्रचारित करना
  • "हविषा जुहोमि" = यज्ञ की आहुति देना, अर्थात जीवन में समर्पण और पूजा भाव से कार्य करना।

 

यह मंत्र हमें क्या सिखाता है?

  • एकता विचारों में होनी चाहिए, न कि केवल शब्दों में
  • जीवन का यज्ञ तब सफल होता है जब सभी मिलकर विचार करें, एक ध्येय रखें, और भावनाओं व ज्ञान का सामंजस्य स्थापित करें।

 

भावार्थ का गहन विश्लेषण

1. “समानी व आकूतिः” – समान संकल्प और दृष्टिकोण

  • "आकूतिः" = संकल्प, अभिलाषा या इच्छाशक्ति
  • समाज की उन्नति तब ही संभव है जब सभी व्यक्तियों की सोच और लक्ष्य समान हों।
  • यहाँ यह स्पष्ट संदेश है कि विचारों की समानता समाज की नींव को मजबूत करती है।

2. “समाना हृदयानि वः” – हृदयों में समान भावनाएँ

  • यह केवल मानसिक स्तर की बात नहीं, बल्कि भावनात्मक सामरस्य की ओर इशारा करता है।
  • समभाव और करुणा जब हृदयों में निवास करती है, तो समाज में मतभेदों की जगह मेल-जोल होता है।

3. “समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति” – जैसे तुम अच्छा सहयोग करते हो, वैसे मन भी समान हो

  • सुसहासति” = सुंदर ढंग से सह-अस्तित्व या सहयोग
  • यह हिस्सा बताता है कि जैसे हम मिलकर अच्छा सहयोग करते हैं, उसी प्रकार हमारा मन भी एकरूप होना चाहिए।
  • मन की समानता से ही सार्थक संवाद, सहयोग, और प्रगति संभव है।

 

इस मंत्र से सीख

  • यह मंत्र हमें केवल विचारात्मक या भावनात्मक नहीं, बल्कि संपूर्ण सामूहिक जीवन की दिशा देता है।
  • जब सभी व्यक्ति समान संकल्प, समान भावनाएँ, और समान मन रखते हैं, तो संगठन, समाज, और राष्ट्र सभी स्तरों पर सशक्त एकता संभव होती है।

02 - अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका

 



1. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् एकपदेन उत्तरम् लिखत -

(क) मित्राणि ग्रीष्मावकाशे कुत्र गच्छन्ति

उत्तर - (क) उत्तराखण्डम्

(ख) सर्वत्र कः प्रसृतः?

उत्तर - (ख) अन्धकारः

(ग) कः सर्वान् प्रेरयन् अवदत्?

उत्तर - (ग) सुधीरः

(घ) कः हितोपदेशस्य कथां श्रावयति?

उत्तर - (घ) सुधीरः

(ङ) कपोतराजस्य नाम किम्?

उत्तर - (ङ) चित्रग्रीवः

(च) व्याधः कान् विकीर्य जालं प्रसारितवान्?

उत्तर - (च) तण्डुलकणान्

(छ) विपत्काले विस्मयः कस्य लक्षणम्?

उत्तर - (छ) कापुरुषलक्षणम्

(ज) चित्रग्रीवस्य मित्रं हिरण्यकः कुत्र निवसति?

उत्तर - (ज) चित्रवने

(झ) चित्रग्रीवः हिरण्यकं कथं सम्बोधयति

उत्तर - (झ) सखे हिरण्यक

(ञ) पूर्वं केषां पाशान् छिनत्तु इति चित्रग्रीवः वदति

उत्तर - (ञ) मदाश्रितानाम्

 

2. पूर्णवाक्येन उत्तरम् लिखत -

(क) यदा केदारक्षेत्रम् आरोहन्तः आसन् किम् अभवत्

उत्तर - (क) श्रीकेदारक्षेत्रम् आरोहन्तः सति तीव्रवृष्टिः आरब्धा।

(ख) सर्वे उच्चस्वरेण किं प्रार्थयन्त?

उत्तर - (ख) सर्वे उच्चस्वरेण “हे भगवन्! रक्ष अस्मान् रक्ष” इति प्रार्थयन्त।

(ग) असम्भवं कार्य कथं कर्तुं शक्यते इति नायकः उक्तवान्?

उत्तर - (ग) आत्मविश्वासबलेन असम्भवम् अपि कार्यम् सम्भूय कर्तुं शक्यते इति सुधीरः अवदत।

(घ) निर्जने वने तण्डुलकणान् दृष्ट्वा चित्रग्रीवः किं निरूपयति ?

उत्तर - (घ) चित्रग्रीवः निर्जने वने तण्डुलकणदर्शनं कृत्वा व्याधस्य सम्भावनां निरूपयति।

(ङ) किं नीतिवचनं प्रसिद्धम्?

उत्तर - (ङ) “अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका” इति नीतिवचनं प्रसिद्धम्।

(च) व्याधात् रक्षां प्राप्तुं चित्रग्रीवः कम् आदेशं दत्तवान्?

उत्तर - (च) चित्रग्रीवः पाशविमुक्तये हिरण्यकं आदेशं दत्तवान्।

(छ) हिरण्यकः किमर्थं तूष्णीं स्थितः?

उत्तर - (छ) कपोतानाम् अवपातशङ्कया हिरण्यकः तूष्णीं स्थितः।

(ज) पुलकितः हिरण्यकः चित्रग्रीवं कथं प्रशंसति?

उत्तर - (ज) चित्रग्रीवः हिरण्यकं “साधु मित्र! साधु” इति प्रशंसति।

(झ) कपोताः कथं आत्मरक्षणं कृतवन्तः?

उत्तर - (झ) कपोताः बुद्धिबलेन संघटनसामर्थ्येन च आत्मसंरक्षणं कृतवन्तः।

(ञ) नायकस्य प्रेरकवचनैः सर्वेऽपि किम् अकुर्वन्?

उत्तर - (ञ) सुधीरस्य प्रेरणया सर्वे पुलनिर्माणे संलग्नाः जाताः।

 

३. अधोलिखितानि वाक्यानि पठित्वा ल्यप्-प्रत्ययान्तेषु परिवर्तयत-

उत्तर - (क) छात्रः कक्षां प्रविशति । संस्कृतं पठति ।      छात्रः कक्षां प्रविश्य संस्कृतं पठति ।

(ख) भक्तः मन्दिरम् आगच्छति । पूजां करोति ।           भक्तः मन्दिरम् आगत्य पूजां करोति ।

(ग) माता भोजनं निर्माति । पुत्राय ददाति ।                  माता भोजनं निर्माय पुत्राय ददाति ।

(घ) सुरेशः प्रातः उत्तिष्ठति । देवं नमति ।                   सुरेशः प्रातः उत्थाय देवं नमति ।

(ङ) रमा पुस्तकं स्वीकरोति । विद्यालयं गच्छति ।        रमा पुस्तकं स्वीकृत्य विद्यालयं गच्छति ।

(च) अहं गृहम् आगच्छामि । भोजनं करोमि ।               अहं गृहम् आगत्य भोजनं करोमि ।

(छ) तण्डुलकणान् विकिरति । जालं विस्तारयति ।       तण्डुलकणान् विकीर्य जालं विस्तीर्यति ।

(ज) व्याधः तण्डुलकणान् अवलोकते । भूमौ अवतरति । व्याधः तण्डुलकणान् अवलोक्य भूमौ अवतति ।

 

४. उदाहरणानुसारम् उपसर्गयोजनेन क्त्वा-स्थाने ल्यप्-प्रत्ययस्य प्रयोगं कृत्वा पदानि परिवर्तयत -

                    (सम्, आ, उप, उत्, वि, प्र)

उत्तर - (क) छात्रः गृहम् गत्वा भोजनं करोति ।      छात्रः गृहम् आगत्य (आ+गम्+ल्यप्) भोजनं करोति ।

(ख) माता वस्त्राणि क्षालयित्वा पचति ।               माता वस्त्राणि प्रक्षाल्य (प्र+क्षाल्+ल्यप्) पचति ।

(ग) शिक्षकः श्लोकं लिखित्वा पाठयति ।              शिक्षकः श्लोकं विलिख्य (वि+लिख्+ ल्यप्) पाठयति ।

(घ) रमा स्थित्वा गीतं गायति ।                         रमा उत्थाय (उत्+स्था+ल्यप्) गीतं गायति ।

(ङ) शिष्यः सर्वदा गुरुं नत्वा पठति ।                 शिष्यः सर्वदा गुरुं प्रणम्य (प्र+नम्+ल्यप्) पठति ।

(च) लेखकः आलोचनं कृत्वा लिखति ।              लेखकः आलोचनां परिष्कृत्य (परि+कृ+ल्यप्) लिखति ।

 

 ५. पाठे प्रयुक्तेन उपयुक्तपदेन रिक्तस्थानं पूरयत -

उत्तर - (क) सर्वैः एकचित्तीभूय जालमादाय उड्डीयताम्।

(ख) जालापहारकान् तान् अवलोक्य पश्चात् अधावत्।

(ग) अस्माकं मित्रं हिरण्यको नाम मूषकराजः गण्डकीतीरे चित्रवने निवसति।

(घ) हिरण्यकः कपोतानाम् अवपातभयात् चकितस्तुष्णीम् स्थितः।

(ङ) यतोहि विपत्काले विस्मयः एवं कापुरुषलक्षणम्।

 

६. पाठे प्रयुक्तेन ल्यप्-प्रत्ययान्तपदेन सह उपयुक्तं पदं योजयत

(क) विकीर्यजालम्

(ख) विस्तीर्यजालापहारकान्

(ग) अवतीर्यउड्डीयताम्

(घ) अवलोक्यतद्वचनम्

(ङ) एकचित्तीभूयभूमौ

(च) प्रत्यभिज्ञायतण्डुलकणान्

उत्तर - (क) विकीर्य                    तण्डुलकणान्

(ख) विस्तीर्य                  जालम्

(ग) अवतीर्य                   भूमौ

(घ) अवलोक्य                जालापहारकान्

(ङ) एकचित्तीभूय             उड्डीयताम्

(च) प्रत्यभिज्ञाय              तद्वचनम्

 

७. समासयुक्तपदेन रिक्तस्थानं पूरयत-

उत्तर - (क) गण्डक्याः तीरम् गण्डकीतीरम्                    तस्मिन् = गण्डकीतीरे

(ख) तण्डुलानां कणाः तण्डुलकणाः                   तान् = तण्डुलकणान्

(ग) जालस्य अपहारकाः जालापहारकाः             तान् = जालापहारकान्

(घ) अवपातात् भयम् अवपातभयम्                   तस्मात् = अवपातभयात्

(ङ) कापुरुषाणां लक्षणम् कापुरुषलक्षणम्            तस्मिन् = कापुरुषलक्षणे

 

८. सन्धिविच्छेदं कुरुत

उत्तर - (क) इत्याकर्ण्य                                         = इति + आकर्ण्य

(ख) चित्रग्रीवोऽवदत्                         = चित्रग्रीवः + अवदत्

(ग) बालकोऽत्र                                = बालकः + अत्र

(घ) धैर्यमथाभ्युदये                          = धैर्यम् + अथ + अभ्युदये

(ङ) भोजनेऽप्यप्रवर्तनम्                    = भोजने + अपि + अप्रवर्तनम्

(च) नमस्ते                                    = नमः + ते

(छ) उपायश्चिन्तनीयः                       = उपायः + चिन्तनीयः

(ज) व्याधस्तत्र                               = व्याधः + तत्र

(झ) हिरण्यकोऽप्याह                        = हिरण्यकः + अपि + आह

(ञ) मूषकराजो गण्डकीतीरे               = मूषकराजः + गण्डकीतीरे

(ट) अतस्त्वाम्                               = अतः + त्वाम्

          (ठ) कश्चित्                                    = कः + चित्

01 - सङ्गच्छध्वं संवदध्वम्

अभ्यासः प्रश्नः –

१.  छात्र स्वयं करे |

२.  अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत -

(क) सर्वेषां मनः कीदृशं भवेत्

उत्तर - सर्वेषां मनः समानं भवेत् 

(ख) सङ्गच्छध्वं संवदध्वम् इत्यस्य कः अभिप्रायः

उत्तर -  सर्वे मिलित्वा चलन्तु परस्परं च वार्तालापं कुर्वन्तु ।

(ग) सर्वे किं परित्यज्य ऐक्यभावेन जीवेयुः

उत्तर - सर्वे भेदभावं परित्यज्य ऐक्यभावेन जीवेयुः ।

(घ) अस्मिन् पाठे का प्रेरणा अस्ति

उत्तर – अस्मिन् पाठे एकतायाः, सद्भावस्य च प्रेरणा अस्ति ।

 

३.  रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत -

(क) परमेश्वरः सर्वत्र व्याप्तः अस्ति। 

उत्तर – क: सर्वत्र व्याप्तः अस्ति?

(ख) वयम् ईश्वरं नमामः । 

उत्तर – वयम् कं नमामः?

(ग) वयम् ऐक्यभावेन जीवामः । 

उत्तर – वयम् कथं जीवामः?

(घ) ईश्वरस्य प्रार्थनया शान्तिः प्राप्यते। 

उत्तर – कस्य प्रार्थनया शान्तिः प्राप्यते?
(ङ) अहं समाजाय श्रमं करोमि । 

उत्तर – अहं कस्मै श्रमं करोमि?

(च) अयं पाठः ऋग्वेदात् सङ्कलितः । 

उत्तर – अयं पाठः कुतः सङ्कलितः?

(छ) वेदस्य अपरं नाम श्रुतिः । 

उत्तर – कस्य अपरं नाम श्रुति:?

(ज) मन्त्राः वेदेषु भवन्ति । 

उत्तर – मन्त्राः केषु भवन्ति?

 

४.  पट्टिकातः शब्दान् चित्वा अधोलिखितेषु मन्त्रेषु रिक्तस्थानानि पूरयत –

   (संवदध्वम्, समितिः, आकूतिः, भागं, मनः, हृदयानि, जानाना, समानं, मनो, हविषा, सुसहासति, मनांसि |)

(क) सङ्गच्छध्वं ...................... सं वो .......................... जानताम् ।

देवा ...................... यथा पूर्वे सं .............................. उपासते ।

उत्तर – (क) सङ्गच्छध्वं संवदध्वम् सं वो मनांसि जानताम् ।

  देवा भागं यथा पूर्वे सं जानाना उपासते । |

        

(ख) समानो मन्त्रः ....................... समानी समानं ........................ सह चित्तमेषाम् ।

      ............................. मन्त्रमभिमन्त्रये वः समानेन वो ........................... जुहोमि ।

     उत्तर – (ख) समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सह चित्तमेषाम् ।

           समानं मन्त्रमभिमन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि । |

 

 

(ग) समानी व ............................ समाना .......................... वः ।

     समानमस्तु वो ......................... यथा वः .......................... ।

       उत्तर –  (ग) समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः ।

             समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति । |

 

५. पाठे प्रयुक्तान् शब्दान् भावानुसारं परस्परं योजयत -

उत्तर –        (क) संगछध्वम्           -        मिलित्वा चलत

(ख) संवदध्वम्          -        एकस्वरेण वदत

(ग) मनः                  -        सङ्कल्पः

(घ) उपासते              -        सेवन्ते

(ङ) वसूनि                -        धनानि

(च) विश्वानि               -        समस्तानि

(छ) आकूतिः             -        चित्तम्

 

६. उदाहरणानुसारेण लट्-लकारस्य वाक्यानि लोट्-लकारेण परिवर्तयत-

         यथा- बालिकाः नृत्यन्ति    -       बालिकाः नृत्यन्तु   

उत्तर – (क) बालकाः हसन्ति          -        बालकाः हसन्तु

 (ख) युवां तत्र गच्छथः        -        युवां तत्र गच्छतम्

 (ग) यूयं धावथ                 -        यूयं धावत

 (घ) आवां लिखावः            -        आवां लिखाव

             (ङ) वयं पठामः                -        वयं पठाम 

08 - हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः

  अभ्यास प्रश्न   १. अधोलिखितानि वाक्यानि पठित्वा ‘ आम् ’ अथवा ‘ न ’ इति वदन्तु लिखन्तु च । ( क) किं वयं पृथिव्याः पुत्राः पुत्र्यः ...